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दुर्मिल सवैया




दुर्मिल सवैया

मापनी 112 112 112 112,

          112 112 112 112


जिस गेह विवाद न होत कभी, उस गेह सदा प्रभु जी रहते।

जिस गेहन भाइन प्रेम रहे,उस गेह में राम सदा बसते।

जिस जेहन भेद नहीं उपजे, उस देहन देव रमा करते।

जिस प्रेमन सत्य प्रिया रहती,उस प्रेमन कृष्ण सदा दिखते।


जिस ओर दिखे सुख-शांति सदा, बनता हरिधाम विशाल वहाँ।

मन में जिसके अति पुण्य प्रभा,बनता प्रिय मंदिर राम तहाँ।

भववंधन से अनुराग नहीं, वह मानस आज विलुप्त यहाँ ।

चल खोज करो शिव मानव का,अति मानव रूपक भाव जहाँ।


मनमस्त रखो शिवराम भजो, रघुनायक धाम चला करना।

वचनामृत घोल रसायन पान, शिवालय नित्य रचा करना।

करना नित त्याग कुपोषण का, शुभ चिंतन अन्न लिया करना।

रहना अति व्यापक रूप धरे, मत भोग-कुपंथ कभी  चलना।





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1 Comments

Renu

23-Jan-2023 06:34 PM

👍👍🌺

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